गीता प्रेस, गोरखपुर >> मार्कण्डेय पुराण मार्कण्डेय पुराणगीताप्रेस
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अठारह पुराणों की गणना में सातवाँ स्थान है मार्कण्डेयपुराण का...
क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
मार्कण्डेयजी कहते हैं-राजा खनित्रके पुत्र क्षुपने भी राज्य पानेके बाद पिताकी ही भाँति धर्मपूर्वक प्रजाजनोंका पालन किया। वे दानशील तथा अनेक यज्ञोंके अनुष्ठान करनेवाले थे। उन्होंने व्यवहार आदिके मार्गमें शत्रु और मित्र दोनोंके प्रति समान भाव रखा। एक दिन महाराज क्षुप अपने राज्य-सिंहासनपर बैठे थे। उस समय सूतों एवं वन्दीजनोंने कहा—'महाराज! पूर्वकालमें जैसे क्षुप नामके राजा हुए थे, वैसे ही आप भी हैं। प्राचीन राजा क्षुप ब्रह्माजीके पुत्र थे। उनका चरित्र जैसा था, वैसा ही वर्तमान महाराजका भी है। पहलेके महाराज क्षुप गौ और ब्राह्मणोंसे कर नहीं लेते थे तथा उन महात्माने प्रजासे प्राप्त हुए छठे भागके द्वारा इस पृथ्वीपर अनेक यज्ञ किये थे।'
राजा बोले-'मेरे-जैसा कौन मनुष्य उन महात्मा राजाओंका पूर्णरूपसे अनुसरण कर सकेगा, तथापि उत्तम आचरणवाले पुरुषोंके समान कार्य करनेके लिये उद्योग अवश्य करना चाहिये। अतः इस समय मैं जो प्रतिज्ञा करता हूँ, उसे सुनो- मैं महाराज क्षुपके चरित्रका अनुसरण करूँगा तथा खेतीका अभाव होने या उसका अभाव दूर होनेपर तीन-तीन यज्ञोंका अनुष्ठान करूँगा। मेरी यह प्रतिज्ञा सम्पूर्ण भूमण्डलके लिये है। आजके पहले गौ और ब्राह्मणोंने जो राजकर दिया है, वह सब उन्हींकी सेवामें लौटा दूंगा।
विविंशका पुत्र खनीनेत्र हुआ, जो महाबलवान् और पराक्रमी था। उसके यज्ञोंमें गन्धर्वगण विस्मित हो यह गाथा गाया करते थे—'खनीनेत्रके समान दूसरा राजा इस पृथ्वीपर नहीं होगा, क्योंकि उन्होंने दस हजार यज्ञ पूर्ण करके समुद्रसहित यह सारी पृथ्वी दान कर दी थी।' महात्मा ब्राह्मणोंको समूची पृथ्वीका दान दे उन्होंने तपस्यासे द्रव्य संग्रह किया और उसके द्वारा पृथ्वीको छुड़ाया। राजा खनीनेत्रने सरसठ हजार सरसठ सौ सरसठ यज्ञ किये थे और सबमें प्रचुर दक्षिणा दी थी। राजाको कोई पुत्र नहीं था; इसलिये वे पापनाशिनी गोमतीके तटपर गये और वहाँ मन, वाणी एवं शरीरको संयममें रखकर घोर तपस्या करने लगे। सन्तानके लिये उन्होंने इन्द्रका स्तवन किया। उनके स्तोत्र, तपस्या और भक्तिसे सन्तुष्ट होकर इन्द्रने कहा-'राजन्! मैं तुमपर बहुत प्रसन्न हूँ, कोई वर माँगो।'
राजा बोले-देवेश्वर! मुझे कोई पुत्र नहीं है, अतः आपकी कृपासे मुझे पुत्र प्राप्त हो। वह पुत्र समस्त शस्त्रधारियोंमें श्रेष्ठ, अक्षय ऐश्वर्यसे युक्त, धर्मपालक तथा धर्मज्ञ हो।
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- योगचर्या, प्रणवकी महिमा तथा अरिष्टोंका वर्णन और उनसे सावधान होना
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- एक ही परमात्माके त्रिविध रूप, ब्रह्माजीकी आयु आदिका मान तथा सृष्टिका संक्षिप्त वर्णन
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- अदितिके गर्भसे भगवान् सूर्यका अवतार
- सूर्यकी महिमाके प्रसङ्गमें राजा राज्यवर्धनकी कथा
- दिष्टपुत्र नाभागका चरित्र
- वत्सप्रीके द्वारा कुजृम्भका वध तथा उसका मुदावतीके साथ विवाह
- राजा खनित्रकी कथा
- क्षुप, विविंश, खनीनेत्र, करन्धम, अवीक्षित तथा मरुत्तके चरित्र
- राजा नरिष्यन्त और दम का चरित्र
- श्रीमार्कण्डेयपुराणका उपसंहार और माहात्म्य